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Sunday 6 April 2014

उस देश में नारी कैसे बच पाएगी जहाँ जन्म लेने से पहले ही उसे कोख में इसलिए मार दिया जाता है क्योंकि वह एक लड़की है और ये ना हो पाया तो उसे कचरे के ढेर में फेंक दिया जाता है. जहाँ विवाह के बाद भी उसे इसलिए जला दिया जाता है क्योंकि वह दहेज लोभियों की भूख शांत नहीं कर पाती. उस देश में नारी स्वतंत्रता की बातें बेमानी है जहाँ सड़क पर कई गिद्ध उस पर दृष्टि जमाए हुए हैं और मौका मिलते ही उसे नोच खाते हैं. जहाँ राजनेता कहते हैं कि जब मर्यादा का उल्लंघन होता है तो सीता हरण होता है. कोई मुझे ये बताए कि सीता जी ने अपने जीवन में कौनसी मर्यादा का उल्लंघन किया ? बल्कि उन्होने तो आजीवन अपने धर्म की अनुपालना की. उस देश में न्याय की आशा करना बेकार है जहाँ की पुलिस न्याय की गुहार लगाने वाले पीड़ित को इतनी मानसिक प्रताड़ना देती है कि वह अपने साथ हुए अन्याय को नियति मानकर चुपचाप स्वीकार कर लेता है. जहाँ साधु बने बहरूपिये दोषियों को माफ़ करने और पीड़िता को दोषी कहने का साहस रखते हैं. ताली एक हाथ से नहीं बजती ये कहने वाले आसाराम जी के कहने का तो यही तात्पर्य है कि लड़की खुद जाती है बलात्कारियों के पास और कहती है 'मेरा बलात्कार करो'. जिस देश में शीर्ष पर बैठे लोग इतने संवेदना शून्य हो और उनकी मानसिकता इतनी संकीर्ण और कलुषित हो चुकी हो कि वे अपराध का ख़ात्मा कैसे हो ये सोचने की बजाय मुद्दे को लड़की के कपड़ों की साइज़ में उलझा देते हो, या क्षेत्रवाद की राजनीति चमकाने लगते हो ऐसे देश में नारी नहीं बच सकती...बिल्कुल भी नहीं.

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