Subscribe For Free Updates!

We'll not spam mate! We promise.

Saturday 9 August 2014

आज जब छोटू को होटल में प्लेट धोते देखा अपने बचपन के उसी समय में झांक कर मैंने देखा रोज नए चमचमाते बर्तनों में मिल जाता था मुझे मनचाहा खाना नहीं सोचा कभी भी कैसे चमकते हैं ये बर्तन रोजाना श्रम मेरे लिए होता था बस अपना स्कूल बैग स्कूल ले जाना और दोस्तों के साथ खेलते - खेलते थक जाना कागज के नोट तब समझ में न आते थे पिग्गी बैंक में बस सिक्के ही छनछ्नाते थे मेहनत का फल होता है मीठा माँ ने मुझे सिखाया था पर मेहनत का मतलब बस पढ़ना ही तो बताया था क्यों छोटू का बचपन, नहीं है बचपन जैसा काश! न होता इस दुनिया में कोई बच्चा ऐसा.